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सीता नवमी 2025

सीता नवमी क्या है?
सीता नवमी, जिसे जानकी नवमी भी कहा जाता है, सनातन धर्म में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति का पर्व है। यह भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी, देवी सीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है। हर वर्ष वैशाख मास के शुक्‍ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता सीता का अवतरण हुआ था। माता सीता को लक्ष्‍मी स्‍वरूपा माना गया है, इसलिए इस दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा करना भी बहुत शुभ होता है और उनकी कृपा प्राप्‍त होती है। वैवाहिक जीवन की सुख शांति के लिए इस दिन माता सीता की पूजा करने से आपके घर में सुख और शांति बनी रहती है और संतान भी खुशहाल रहती है। इस दिन भक्तजन विशेष पूजा-अर्चना कर माता सीता से सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विवाहिता महिलाएं संतान प्राप्ति और सुहाग की रक्षा के लिए इस व्रत को करती है। जो महिलाएं इस व्रत को पूरी विधि-विधान से करती है माता सीता उनको संतान प्राप्ति और सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देती है।

देवी सीता को पृथ्वी की पुत्री माना जाता है, जो राजा जनक के खेत में हल चलाते समय धरा से प्रकट हुई थीं। अतः यह दिन धरती माता के दिव्य अवतार की स्मृति में अत्यंत शुभ माना जाता है।

सीता नवमी का पर्व विशेष रूप से देवी सीता की पूजा करने के लिए मनाया जाता है, ताकि उनके आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास हो। इस दिन की पूजा से वैवाहिक जीवन में स्थिरता, संतान सुख और समृद्धि प्राप्त करने की कामना की जाती है।

सीता नवमी 2025: जानकी नवमी कब है?
सीता नवमी, जिसे जानकी नवमी भी कहा जाता है, हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि भगवान श्रीराम के जन्म के एक माह बाद आती है। भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास की नवमी तिथि को हुआ था, जबकि माता सीता का जन्म वैशाख मास की नवमी को हुआ। इस दिन माता सीता की पूजा करके भक्तगण अखंड सौभाग्य, प्रेम, समृद्धि और धैर्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सीता नवमी 2025 का पर्व 05 मई 2025 को धूमधाम से मनाया जाएगा। यह दिन न केवल एक धार्मिक अवसर है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त करने की एक उत्कृष्ट मौका भी है। इस दिन विशेष रूप से भक्तजन देवी सीता की पूजा-अर्चना कर उनके अद्भुत साहस, धैर्य और त्याग का सम्मान करते हैं।

सीता नवमी पूजन मुहूर्त
सीता नवमी 2025 पर माता सीता की पूजा हेतु विशिष्ट मुहूर्त का पालन अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस दिन विशेष विधि-विधान से पूजन करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है।

माता सीता की पूजा के लिए विशेष मुहूर्त इस प्रकार रहेगा:
नवमी तिथि प्रारंभ: 5 मई 2025 को प्रातः 07:37 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 6 मई 2025 को प्रातः 08:40 बजे
पूजा मुहूर्त: 5 मई 2025 को प्रातः 06:08 बजे से 07:45 बजे तक।
09:21 बजे से 10:58 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त- 5 मई 2025 को 12:10 बजे से 01:00 बजे तक

सीता नवमी की पूजा विधि
  • प्रातः उठकर स्नान करें व पवित्र वस्त्र धारण करें।
  • व्रत का संकल्प लें और माता सीता-श्रीराम का ध्यान करें।
  • माता सीता, भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • पीले पुष्प, फल, तुलसी दल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • सीता नवमी पूजा मुहूर्त के दौरान व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
  • माता सीता का ध्यान करते हुए श्रीरामचरितमानस या सुंदरकांड का पाठ करें।
  • सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को दान करें तथा कन्याओं को भोजन कराएं।
  • दिनभर उपवास या फलाहार करें।

माता सीता के व्रत की महिमा: एक कथा
प्राचीन काल में एक छोटे से गांव में देवदत्त नामक एक ब्राह्मण रहते थे। वे वेदों और शास्त्रों के महान ज्ञाता थे, और अपने जीवनयापन के लिए दूसरे गांव में भिक्षा मांगने जाते थे। उनकी पत्नी सोभना अत्यंत रूपवती और पतिव्रता थीं।

एक दिन जब देवदत्त भिक्षा मांगने के लिए दूसरे गांव गए थे, शोभना एक बुरी संगत में पड़ गई। वह धीरे-धीरे अपनी कुसंगति में इतनी लीन हो गई कि उसकी चर्चा पूरे गांव में होने लगी। इस कारण वह इतनी कुपित हुईं कि उसने पूरे गांव में आग लगा दी। आग की चपेट में आकर सोभना भी अपनी जान गंवा बैठीं।

गांव में आग लगाने तथा अपनी कुसंगति की वजह से उसे अगले जन्म में कुष्ठ रोग और अंधापन हो जाता है। उसकी स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि उसे खाना भी नसीब नहीं होता था, और वह अक्सर भूखी रहती थी। एक दिन, भूख के मारे परेशान होकर वह एक गांव पहुंची। उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी—सीता नवमी का पावन दिन।

शोभना ने गांव में कई घरों में भोजन मांगा, लेकिन कोई भी उसे भोजन देने को तैयार नहीं हुआ। तभी एक सज्जन व्यक्ति बाहर आकर बोला, "आज सीता नवमी है। इस दिन अन्न का दान नहीं किया जाता। तुम कल आना, तब तुम्हें प्रसाद मिलेगा।" इसके बावजूद शोभना ने जिद पकड़ी और उस व्यक्ति से तुलसी के पत्ते और जल लिया।

भूख से तड़पती हुई शोभना ने वही तुलसी के पत्ते और जल ग्रहण किया और वहीं प्राण त्याग दिए। चमत्कारिक रूप से, उसका व्रत पूरा हो चुका था। सीता माता अति प्रसन्न हो गईं और उन्हें स्वर्ग प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। माता सीता के व्रत के प्रभाव से कौशलपुरी के जयसिंह की पत्नी, कामरूप देश की कामकला रानी बन गई। जो भी व्यक्ति माता सीता के व्रत को श्रद्धा से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं।

सीता नवमी व्रत के लाभ-
  • वैवाहिक जीवन में सुख, प्रेम और सामंजस्य: सीता नवमी पर व्रत और पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख, प्रेम और समर्पण बढ़ता है। वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और संबंधों में मधुरता बनी रहती है। महिलाएं इस दिन पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं।
  • संतान प्राप्ति में सहायक: संतान की इच्छा रखने वालों के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। माता सीता की कृपा से संतान सुख प्राप्त होता है और संतान जीवन में खुशहाली आती है।
  • सौभाग्य, सुख और समृद्धि की प्राप्ति: व्रत करने से जीवन में सौभाग्य, सुख और समृद्धि बढ़ती है। माता लक्ष्मी और माता सीता की कृपा से धन-वैभव और गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है।
  • संयम, धैर्य और पवित्रता की वृद्धि: माता सीता के आदर्शों का अनुसरण करते हुए व्रत करने से जीवन में संयम, धैर्य और पवित्रता का विकास होता है। कठिन परिस्थितियों में भी मनोबल मजबूत और चित्त शांत बना रहता है।
  • पापों का नाश और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त: विधिपूर्वक व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय होता है। साधक का चित्त निर्मल होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम बनता है।
  • स्त्रियों के लिए विशेष लाभ: विवाहिता स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। संतान प्राप्ति और दाम्पत्य जीवन की रक्षा हेतु यह व्रत अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
  • अन्य विशेष लाभ: सीता नवमी पर माता लक्ष्मी का पूजन करने से घर में धन और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। परिवार में सुख-शांति, संतोष और प्रेम का वातावरण बनता है।

सीता नवमी का महत्व
यह पर्व नारी शक्ति, पवित्रता और त्याग के आदर्श का प्रतीक है। इस दिन व्रत करने से सभी प्रकार के पापों का क्षय होता है। जीवन में धैर्य, भक्ति और शुद्धता का संचार होता है। सीता नवमी तिथि पर व्रत और पूजा करने से जीवन में अखंड सौभाग्य, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

सीता नवमी मंत्र
सीता माता के पूजन में निम्न मंत्र का जाप अत्यंत लाभकारी माना जाता है:
"ॐ सीतायै नमः।"
या फिर:
"ॐ श्री सीता रामाय नमः"
इन मंत्रों का जप श्रद्धा पूर्वक करने से माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

सीता नवमी के स्तोत्र
  • सीता स्तुति
  • सीता सहस्रनाम
  • सीता चालीसा
  • रामायण का सुंदरकांड पाठ
  • श्रीरामचरितमानस से माता सीता के चरित्र का पाठ विशेष पुण्यकारी होता है।
इन स्तोत्रों के माध्यम से माता सीता की कृपा सहजता से प्राप्त होती है।

सीता नवमी कैसे मनाएं?
  • प्रातःकाल स्नान कर व्रत संकल्प लें।
  • राम-सीता की पूजा विधिपूर्वक करें।
  • सुंदरकांड का पाठ करें।
  • जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और जल का दान करें।
  • व्रत और उपवास का पालन करते हुए मानसिक शुद्धता रखें।
  • सामूहिक पूजा या धार्मिक कार्यक्रमों में सहभाग करें।

FAQ
1. माता सीता का जन्म कब हुआ था?
माता सीता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसे सीता नवमी या जानकी नवमी के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। देवी सीता को पृथ्वी की पुत्री माना जाता है, जो राजा जनक के खेत में हल चलाते समय धरा से प्रकट हुई थीं।

2. भगवान राम का जन्म कब हुआ था?
भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। जन्म तिथि के अनुसार, श्रीराम का जन्म माता सीता से लगभग एक माह पूर्व हुआ था।

3. माता सीता कौन हैं?
माता सीता भगवान श्रीराम की अर्धगिनी एवं सनातन धर्म में पवित्रता, त्याग और मर्यादा का प्रतीक मानी जाती हैं। वह धरती माता की पुत्री थीं और उन्हें जानकी, वैदेही तथा भूमिपुत्री के नाम से भी जाना जाता है।

4. सीता नवमी है या सीता अष्टमी?
माता सीता का जन्म सीता नवमी के दिन हुआ था, अर्थात वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को। सीता अष्टमी का कोई संबंध माता सीता के जन्म से नहीं है। सही तिथि नवमी तिथि ही है।

5. सीता नवमी क्यों मनाई जाती है?
सीता नवमी माता सीता के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन माता सीता के आदर्श चरित्र, त्याग, धैर्य और नारी शक्ति का स्मरण कर उनके गुणों से प्रेरणा ली जाती है।

6. माता सीता का जन्मदिन किस दिन है?
माता सीता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। सीता माता कि जन्म तिथि हर वर्ष पंचांग के अनुसार निर्धारित होती है। वर्ष 2025 में यह दिन 5 मई को पड़ेगा।
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