
केतु ग्रह शांति अनुष्ठान
केतु ग्रह शांति अनुष्ठान केतु ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाव का एक प्राचीन और प्रभावी उपाय है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनकी कुंडली में केतु अशुभ स्थान पर हो या केतु की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा के दौरान उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो। इस अनुष्ठान का मुख्य उद्देश्य केतु के प्रतिकूल प्रभावों को समाप्त करके जातक के जीवन में शांति, स्थिरता और समृद्धि लाना है। इस अनुष्ठान में कुछ निश्चित दिनों में 68,000 बार केतु के वैदिक मंत्र का जप किया जाता है और इसके बाद दशांश जप या हवन कराकर अनुष्ठान संपन्न होता है। इस अनुष्ठान से केतु के अशुभ प्रभावों का शमन होता है, और जीवन में स्थिरता एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
केतु, ज्योतिष शास्त्र में एक पाप ग्रह के रूप में जाना जाता है, जिसे सामान्यतः अशुभ प्रभावों के लिए पहचाना जाता है। केतु का स्वभाव तमोगुणी होता है, इसका रूप दारुण और मलिन होता है, और यह मिश्रित वर्ण तथा वर्णसंकर जाति का प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है।
हालांकि, जब केतु शुभ स्थिति में होता है, तो यह अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है और शुभ ग्रहों से भी श्रेष्ठ माना जाता है। विशेष रूप से, इसकी शुभ स्थिति में यह गुरु से भी अधिक उत्कृष्ट फल देने वाला माना गया है। केतु के प्रभाव से जातक के जीवन में अद्वितीय प्रगति, आध्यात्मिक उन्नति, और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग खुल सकते हैं। इस कारण, इसे मोक्ष प्रदान करने वाला ग्रह भी कहा जाता है।
लेकिन जब केतु व्यक्ति की कुंडली में अशुभ स्थान पर स्थित हो या इसकी महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा चल रही हो तो यह ग्रह जातक के जीवन में मानसिक अशांति, पारिवारिक कलह, कार्यों में रुकावट, और धन की कमी जैसी चुनौतियाँ लाता हैं। इसके साथ ही, केतु के नकारात्मक प्रभावों के कारण आंतरिक कीटों, चेचक और संक्रामक रोगों जैसी बीमारियों से भी जूझना पड़ सकता है।
केतु दोष से मुक्ति, आध्यात्मिक उत्थान और मानसिक शांति के लिए कराएं वैदिक केतु ग्रह शांति अनुष्ठान। जानें विधि, लाभ और पूजन सामग्री।
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