
सूर्य ग्रह बलिष्ठ अनुष्ठान
सूर्य ग्रह बलिष्ठ अनुष्ठान एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। इस अनुष्ठान में कुछ निश्चित दिनों में 28,000 बार सूर्य ग्रह के वैदिक मंत्र का जप किया जाता है, और फिर इसका दशांश जप या हवन संपन्न कराया जाता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनकी कुंडली में सूर्य ग्रह अशुभ स्थान पर हो, या सूर्य की महादशा, अंतर्दशा, या प्रत्यंतर दशा के दौरान उन्हें सूर्य से संबंधित गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो। इस प्रक्रिया से जातक को सूर्य के दुष्प्रभावों से मुक्ति और जीवन में शांति प्राप्त होती है।
सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है, इसे पुरुष ग्रह माना जाता है और यह रक्तवर्ण है। इसकी प्रकृति पित्त प्रधान है और यह पाप ग्रहों की श्रेणी में आता है। सूर्य आत्मा, स्वभाव, स्वास्थ्य, राजसत्ता और देवालय आदि का प्रतिनिधित्व करता है तथा इसे पितृकारक ग्रह भी माना जाता है। पितृ दोष से संबंधित विचारों के लिए सूर्य की स्थिति पर ध्यान दिया जाता है।
सूर्य का विशेष प्रभाव नेत्र, हृदय, मेरुदण्ड और स्नायु तंत्र जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर होता है। सूर्य की अशुभ स्थिति जातक के जीवन में सिरदर्द, अपच, क्षय, महाज्वर, अतिसार, मंदाग्नि, नेत्र विकार, मानसिक तनाव, उदासी, खेद, अपमान, और कलह की संभावनाएं आदि समस्याएं उत्पन्न करती है। या यों कहें इन सब समस्याओं का मुख्य कारण सूर्य का जातक की कुंडली में अशुभ स्थान पर होना ही माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य ग्रह को पाप ग्रह माना जाता है, जो अधिकतर समस्या उत्पन्न करने वाला होता है विशेषकर जब कुंडली में गलत स्थान पर हो और इसकी महादशा, अंतर्दशा, या प्रत्यंतर दशा चल रही हो, तो यह व्यक्ति के जीवन में गंभीर और दीर्घकालिक समस्या उत्पन्न कर सकता है।, जिसका जीवन पर लंबे समय तक गहरा असर पड़ता है। यदि आपकी कुंडली में भी सूर्य ग्रह इन दशाओं में समस्याएं उत्पन्न कर रहा हो, तो इसे विधिक उपायों द्वारा शीघ्र शांत करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है, जिससे इसके दुष्प्रभावों से मुक्ति मिल सके।
हालांकि, इस अनुष्ठान को कराते समय एक महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखना चाहिए—सूर्य ग्रह के वैदिक मंत्र का 28000 बार जप के बाद ही यह अनुष्ठान पूर्ण सफल होता है। साथ ही, इसे योग्य और दक्ष आचार्यों द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए। तभी इस अनुष्ठान से जातक को पूर्ण और शीघ्र लाभ प्राप्त हो सकता है।
सूर्य दोष से मुक्ति और आत्मबल की प्राप्ति के लिए कराएं वैदिक सूर्य बलिष्ठ अनुष्ठान। जानिए विधि, लाभ और पूजन सामग्री की पूरी जानकारी।
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