
हिंदू धर्म में पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और संतुष्टि के लिए श्राद्ध कर्म अनिवार्य माने गए हैं। मान्यता है कि यदि मृत्यु उपरांत मृतक का सही तरह से श्राद्ध नहीं हो तो उसकी आत्मा भटकती रहती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पाती। त्रिपिंडी श्राद्ध इसी श्रद्धा और कर्तव्य का एक विशेष प्रक्रिया है, जो उन अतृप्त पितरों की शांति के लिए किया जाता है जिनका विधिवत श्राद्ध कई वर्षों तक नहीं किया गया हो या जिनकी अकाल/असामयिक मृत्यु हुई हो। यह एक दिवसीय पितृ शांति कर्म है, जिसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों को तृप्त कर परमधाम (मोक्ष) भेजने का प्रयास करते हैं।
त्रिपिंडी श्राद्ध क्या है?
त्रिपिंडी श्राद्ध एक अत्यंत महत्वपूर्ण वैदिक प्रक्रिया है, जिसे उन पितरों के लिए किया जाता है जिनका विधिपूर्वक श्राद्ध न हुआ हो, या जो किसी कारणवश असंतुष्ट अथवा अज्ञात लोकों में भटक रहे हों।
यह प्रक्रिया विशेष रूप से तीन पीढ़ियों के पितरों—
• पिता
• पितामह (दादा)
• प्रपितामह (परदादा)
के लिए किया जाता है। इसीलिए इसे “त्रिपिंडी” कहा गया है, जिसका अर्थ है—तीन पिंड बनाकर तर्पण करना।
यह केवल एक कर्मकांड नहीं बल्कि पितृऋण से मुक्ति का मार्ग है। ब्रह्मवैवर्त पुराण और गरुड़ पुराण में इसका उल्लेख है कि जो संतान यह श्राद्ध करती है, उसके कुल में पितृदोष समाप्त हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, यदि पितरों को शांत और संतुष्ट नहीं किया गया तो वे वंशजों के जीवन में बाधाएं पैदा करते हैं। यह बाधाएं स्वास्थ्य, संतान, धन और रिश्तों में स्पष्ट देखी जा सकती हैं।
विशेषता: गंगा तट पर आचार्यगण द्वारा वैदिक रीति से
यह प्रक्रिया सामान्य पिंडदान या श्राद्ध से भिन्न है।
• इसे केवल योग्य और पितृ शांति में दक्ष और पारंगत आचार्य ही सम्पन्न कर सकते हैं।
• गंगातट पर कुशासन, तिल, जल, गाय के घी, ब्राह्मण भोज एवं मंत्रों से युक्त विशेष क्रियाएँ की जाती हैं।
• पितरों के तीन वर्गों के लिए विशेष तीन पिंड (त्रि-पिंडी) बनाकर तर्पण किया जाता है।
यह श्राद्ध किनके लिए उपयुक्त है?
• जिनके घर में बार-बार अवसाद, क्लेश, अशांति या अकाल मृत्यु जैसे संकेत मिलते हैं।
• जिनके पितरों को मृत्यु के बाद ठीक से संस्कार नहीं किया गया या आत्मा भटकती है।
• जिन्हें पितृदोष है और संतान, विवाह, करियर या स्वास्थ्य में बाधाएँ हैं।
• जिनके सपनों में मृत परिजन बार-बार आते हैं या श्राद्ध न करने पर अशुभ घटनाओं का होना।
क्यों आवश्यक है त्रिपिंडी श्राद्ध?
• पितृदोष का निवारण
अगर जन्मकुंडली में पितृदोष हो, संतानहीनता, बार-बार अपयश, परिवार में रोग और क्लेश हों—तो त्रिपिंडी श्राद्ध इसका उपाय है।
• अकाल मृत्यु या भूत-प्रेत बाधा के लिए
जिन पितरों की मृत्यु असमय, दुर्घटना या आत्महत्या में हुई, वे अक्सर प्रेत योनि में भटकते हैं। यह श्राद्ध उनकी मुक्ति का मार्ग है।
• श्राद्ध न हो पाने की स्थिति में
कई बार वंशजों द्वारा वर्षों तक पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाता। ऐसे में त्रिपिंडी श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक है।
त्रिपिंडी श्राद्ध कब करें?
सर्वश्रेष्ठ समय
• पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) की अमावस्या
• महालय अमावस्या (सर्व पितृ अमावस्या)
• आचार्य द्वारा निर्दिष्ट श्रेष्ठ मुहूर्त
स्थान
• गया (बिहार), हरिद्वार, प्रयागराज (त्रिवेणी संगम), नासिक या अन्य तीर्थ स्थल।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
• त्रिपिंडी श्राद्ध हमेशा योग्य आचार्य के निर्देशन में करना चाहिए।
• यह प्रक्रिया पवित्र तीर्थ स्थल पर करना चाहिए।
• यदि वंश में कोई पुरुष न हो तो महिलाएं भी इसे कर सकती हैं।
आधुनिक जीवन में महत्व
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में लोग पितृकर्मों को भूलते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप मानसिक अशांति, पारिवारिक विवाद और जीवन में रुकावटें बढ़ती हैं। त्रिपिंडी श्राद्ध करने से यह सब शांत होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जानें त्रिपिंडी श्राद्ध की तिथि, विधि, लाभ और महत्व—पितरों की शांति, पितृ दोष निवारण और जीवन की बाधाओं से मुक्ति का पवित्र वैदिक उपाय
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