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Lakshmi-Poojan

दीवाली पूजन में सबसे पहले गणेश-अंबिका, फिर कलश, और अंत में गणेश-महालक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। यदि आपने गणेश-अंबिका पूजन विधि का पालन किया है, तो यह अत्यंत शुभ है। यदि नहीं, तो आप हमारे ब्लॉग सेक्शन में जाकर संपूर्ण और वैदिक रीति से पूजन की विधि जान सकते हैं।

यह गणेश-लक्ष्मी पूजन विशेषतया दीवाली पर्व में होने वाली गणेश लक्ष्मी पूजा के दौरान की जाती है इसके अलावा इसे व्यापारिक प्रतिष्ठानों में होने वाली गणेश लक्ष्मी पूजन में भी किया जाता है।

श्री गणेश-महालक्ष्मी पूजन विधि

ध्यान -

अब हाथ में पुष्प लेकर निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए गणेश जी तथा माता लक्ष्मी का ध्यान करे -

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

ध्यान करने के पश्चात हाथ में लिए हुए पुष्प गणेश जी तथा लक्ष्मी जी को समर्पित करें।

आवाहन -

पुनः हाथ में पुष्प लें और माता लक्ष्मी एवं भगवान गणेश जी के आवाहन के लिये निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प अर्पित करे।)

एहोहि हेरम्ब महेशपुत्र समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष । माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

प्रतिष्ठा -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को स्पर्श करके उन पर अक्षत छोड़ते हुए निम्नांकित मंत्र को पढ़कर उनकी प्रतिष्ठा करें।

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ गुं समिमं दधातु।
विश्श्वेदेवा स ऽइह मादयन्तामों प्रतिष्ठ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश-लक्ष्मी सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।

आसन -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को आसन के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करें-

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् । अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।

पाद्य -

पाद्य के लिए एक-एक आचमनी जल भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के पैरों के पास छोड़ दें।

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् । पाद्यं ददाम्यहं देव गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् । श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि।

अर्घ्य –

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए एक शुद्ध पात्र में जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प और फल लेकर अर्घ्य देवें-

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्थ्यं सम्पादितं मया।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं प्रसन्नो वरदो भव ॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्येस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।

आचमन -

आचमन के लिए गौरी गणेश जी के मुख के सामने निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए दो आचमनी जल गिरावे।

कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम् ।
तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वर ।।
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मनीमीं शरणं प्र पद्येऽलक्ष्मीमें नश्यतां त्वां वृणे ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। आचमनीयं जलं समर्पयामि।

स्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी जल स्नान के लिए छोड़े-

मन्दाकिन्यास्तु यद् वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। स्नानं समर्पयामि।

दुग्धस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी दुग्ध, स्नान के लिए छोड़े-

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ।।
ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु महह्यम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। पयः स्नानं समर्पयामि। पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

दधिस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी दही स्नान के लिए छोड़े-

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू षि तारिषत् ।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

घृतस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी घी स्नान के लिए छोड़े-

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । घृतस्नानं समर्पयामि। घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

मधुस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी शहद स्नान के लिए छोड़े-

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजःपुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ।। मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवः रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ २ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। मधुस्नानं समर्पयामि। मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

शर्करास्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी शक्कर स्नान के लिए छोड़े-

इक्षुसारसमुद्धता शर्करा पुष्टिकारिका ।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अपाः रसमुद्वयसः सूर्ये सन्तः समाहितम्। अपा रसस्य यो रसस्तं वो गृह्यम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाष्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

पञ्चामृतस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी पंचामृत स्नान के लिए छोड़े-

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्। पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्स्रोतसः। सरस्वती तु पञ्चथा सो देशेऽभवत् सरित् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

यदि भगवती महालक्ष्मी का अभिषेक करना हो, तो शुद्ध जल या दुग्ध से 'श्रीसूक्त' का पाठ करते हुए अखंड जलधारा से उनका स्नान (अभिषेक) कराना चाहिए। प्रतिमा जलधारा से क्षरित न हो, इसलिए धातु की मूर्ति या द्रव्यलक्ष्मी पर अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के लिए इन्हें एक अलग पात्र में स्थापित करना चाहिए, ताकि विधिपूर्वक पूजन संपन्न हो सके और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो।

गन्धोदकस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी चंदन मिश्रित जल स्नान के लिए छोड़े-

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् ।
चन्दनं देवदेवेश स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । गन्धोदकस्नानं समर्पयामि।

गन्ध (चन्दन) मिश्रित जल से स्नान कराये।

शुद्धोदकस्नान -

गणेश और लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी गंगा जल या शुद्ध जल स्नान के लिए छोड़े-

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

स्नान के बाद प्रतिमा को अच्छे से पोंछकर उसे यथास्थान आसन पर स्थापित कर दें।

वस्त्र -

अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र अर्पित करें या वस्त्र का अभाव होने पर रक्षासूत्र अर्पित करें-

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।

उपवस्त्र -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक-एक वस्त्र अर्पित करें या वस्त्र का अभाव होने पर रक्षासूत्र अर्पित करें-

यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति ।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि।

आभूषण -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए आभूषण अर्पित करें-

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।
प्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णद मे गृहात् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि।

गन्ध -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए अनामिका अँगुली से केसर व कपूर मिश्रित चन्दन अर्पित करें-

गन्धं कर्पूरसंयुक्तं दिव्यं चन्दनमुत्तमम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । गन्धं समर्पयामि।

रक्तचन्दन -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी को पुनः निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए अनामिका से रक्त चन्दन अर्पित करें-

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
रक्तचन्दनसम्मिश्र पारिजातसमुद्भवम् ।
मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । रक्तचन्दनं समर्पयामि।

सिन्दूर -

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए सिंदूर अर्पित करें-

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूधनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । सिन्दूरं समर्पयामि।

कुमकुम -

निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए कुमकुम अर्पित करें-

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम् ।
अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि।

पुष्पसार (इतर) -

निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए सुगन्धित तेल एवं इतर अर्पित करें-

दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम्।
गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगृह्यताम् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि।

अक्षत -

निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए कुमकुम युक्त अक्षत अर्पित करें-

अक्षताश्च सश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । अक्षतान् समर्पयामि।

पुष्प एवं पुष्पमाला -

अब पुष्प और माला निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्पित करें और हो सके तो लाल कमल के फूल नहीं तो लाल पुष्प से देवी का श्रगार करें-

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्याणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ मनसः काममाकृतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।

दूर्वा -

भगवान गणेश को निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते दूर्वा अर्पित करें-

दूर्वाकुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् ।
आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥
ॐ गणपतये नमः । दूर्वाङ्करान् समर्पयामि।

अंग-पूजा-

देवी महालक्ष्मी की रोली, कुमकुम मिश्रित अक्षत-पुष्पों से एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए अंग-पूजा करे-

ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।
ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि।
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि।
ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि।
ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि।
ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि।
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्ग पूजयामि।

अष्टसिद्धि-पूजन

अंग पूजा के बाद, पूर्व दिशा से शुरू करके आठों दिशाओं में निम्नलिखित एक – एक सिद्धि का उच्चारण करते हुए कुमकुम युक्त अक्षत से आठों सिद्धियों की पूजा करें-

१-ॐ अणिम्ने नमः (पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्पो नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः (नैऋत्ये), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः (पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः (उत्तरे) तथा ८-ॐ वशितायै नमः (ऐशान्याम्)।

अष्टलक्ष्मी-पूजन

आठों सिद्धियों के पूजन के बाद, पूर्व दिशा से शुरू करके आठों दिशाओं में निम्नलिखित एक – एक लक्ष्मी जी के नाम का उच्चारण करते हुए कुमकुम युक्त अक्षत से आठ लक्ष्मियों की पूजा करें-

१-ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७-ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

धूप –

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए धूप अर्पित करें-

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः आघ्नेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं सुमनोहरः । प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । धूपमाघ्रापयामि।

दीप -

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दीप अर्पित करें-

कार्यासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।
तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। दीपं दर्शयामि।

नैवेद्य –

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए नैवेद्य अर्पित करें-

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। नैवेद्यं निवेदयामि, नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।

करोद्वर्तन –

ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः

यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथों में चन्दन उपलेपित करे।

ऋतुफल -

निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए ऋतुफल अर्पित करे।

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।

ताम्बूल-पूगीफल –

अब निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए सुपाड़ी, लौंग, इलायची सहित पान चढ़ावे-

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । मुखवासार्थे एलालवंगादिभिर्युतं ताम्बूलपत्रं पूगीफलं च समर्पयामि।

दक्षिणा –

अपनी श्रद्धा के अनुसार निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दक्षिणा अर्पित करें-

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः । दक्षिणां समर्पयामि।

नीराजन –

आरती करे , जल छोड़े एवं हाथ धो ले-

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् ।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥
चक्षुर्द सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। नीराजनं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा –

गणेश जी व माता लक्ष्मी की निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार परिक्रमा करें ।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। प्रदक्षिणां समर्पयामि।

पुष्पांजलि –

हाथ में पुष्प लेकर मंत्र पढ़कर पुष्प अर्पित करें ।

अंजलिमें फूल लेकर यह मन्त्र पढ़े-
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः पुष्याजलिं समर्पयामि।

प्रार्थना-

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥
सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा यत्तत्व पादपङ्कजम्।
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धयये ॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात् त्वदर्चनात् ॥
ॐ लक्ष्मीगणपतिभ्यां नमः। प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

प्रार्थना करने के पश्चात गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को नमस्कार करें-

समर्पण –

पूजन के अन्त में निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त पूजन-कर्म निवेदित करे तथा जल गिराये-

'कृतेनानेन पूजनेन लक्ष्मीगणपती प्रीयेताम्, न मम।'

गणेशजी और भगवती महालक्ष्मी की यथासंभव उपचारों द्वारा विधिपूर्वक पूजा करने के पश्चात, महालक्ष्मी पूजन के अंतर्गत महत्वपूर्ण अंगों की पूजा की जाती है। इन अंगों में श्री देहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, देवी सरस्वती, कुबेर, तुला-मान और दीपक शामिल होते हैं।

पूजन क्रम में सर्वप्रथम 'देहलीविनायक' की पूजा की जाती है, क्योंकि यह शुभारंभ का प्रतीक होता है। देहलीविनायक की पूजा से समस्त कार्यों में शुभता और विघ्नहर्ता गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे पूजा निर्विघ्न रूप से संपन्न होती है। इस पूजा को करते समय विशेष श्रद्धा और समर्पण के साथ मंत्रों का उच्चारण करें, ताकि आपकी आराधना सफल हो और देवी महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त हो।

देहलीविनायक-पूजन

व्यापारिक प्रतिष्ठानों की दीवारों पर शुभता और समृद्धि का प्रतीक माने जाने वाले 'ॐ श्रीगणेशाय नमः', स्वस्तिक चिह्न, 'शुभ-लाभ' आदि मांगलिक और कल्याणकारी प्रतीकों को सिंदूर आदि से अंकित किया जाता है। इन पवित्र प्रतीकों के साथ, 'ॐ देहलीविनायकाय नमः' इस नाम-मंत्र का उच्चारण करते हुए गंध, पुष्प, और अन्य पूजन सामग्रियों से श्रद्धापूर्वक पूजन करें। यह विधि न केवल प्रतिष्ठान में शुभता और समृद्धि का आह्वान करती है, बल्कि विघ्नहर्ता गणेशजी की कृपा से कार्यों में सफलता और समृद्धि की वृद्धि सुनिश्चित करती है।

श्रीमहाकाली (दवात)-पूजन

(आजकल दवात के अभाव में कलम(पेन) में ही महाकाली का पूजन करते हैं। )

स्याही युक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के समक्ष पुष्प और अक्षत के पुंज में स्थापित करें। इसके बाद दवात पर सिंदूर से स्वस्तिक चिह्न बनाएं और उसपर कलावा बाँधें। श्रद्धापूर्वक 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः' इस नाम-मंत्र का जाप करते हुए, दावात में विराजमान भगवती महाकाली की पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से गंध, पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजा करें।

पूजन के उपरांत, भगवती महाकाली को प्रार्थनापूर्वक नमन करें और उनसे यह प्रार्थना करें कि वे आपको जीवन के हर कार्य में शक्ति, साहस और विजय का आशीर्वाद प्रदान करें। पूजन के इस पवित्र क्षण में पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ महाकाली का ध्यान करें, ताकि उनकी कृपा और संरक्षण सदैव आप पर बना रहे।

कालिके ! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥

लेखनी-पूजन

लेखनी अर्थात कलम पर मौली य कलावा बाँधकर सामने रख ले और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें-

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥

'ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः' इस पवित्र नाम मंत्र का उच्चारण करते हुए, लेखनी का गंध, पुष्प, अक्षत और अन्य पूजन सामग्रियों से विधिपूर्वक पूजन करें। इसके पश्चात, श्रद्धा और समर्पण के साथ देवी से प्रार्थना करें:

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥

सरस्वती-(पञ्जिका-बही-खाता) पूजन

पञ्जिका -

बही और बसना (हिसाब-किताब की पुस्तिका) पर रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक चिह्न अंकित करें। इसके बाद श्रद्धा और समर्पण के साथ उस स्वस्तिक पर देवी सरस्वती का पूजन करें।

निम्नलिखित वंदना से देवी सरस्वती का ध्यान करें:

ध्यान-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
'ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः'

कुबेर-पूजन

तिजोरी या रुपये रखने वाले संदूक को रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक और अन्य मांगलिक चिह्नों से सुसज्जित करें। इसके बाद पूरी श्रद्धा के साथ निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण कर उसमें धन के अधिपति भगवान कुबेर का आवाहन करें-

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥

आवाहन के पश्चात्, 'ॐ कुबेराय नमः' इस पवित्र नाम-मंत्र का जाप करते हुए विधिपूर्वक यथालब्धोपचार से भगवान कुबेर की पूजा करें। इस पूजन के अंत में, समर्पण और श्रद्धा के साथ इस प्रकार प्रार्थना करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥

इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद, पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, और दूर्वा से युक्त थैली (जिसे लक्ष्मी की द्रव्य स्वरूप माना जाता है) को श्रद्धापूर्वक तिजोरी में रखें-

तुला तथा मान-पूजन

सिंदूर से तराजू और अन्य सामग्री पर स्वस्तिक चिह्न बनाएं। इसके बाद, मौली से उस स्वस्तिक को लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवता का ध्यान इस प्रकार करे-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ।।

ध्यान के बाद, 'ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः' इस पवित्र नाम-मंत्र का उच्चारण करते हुए, गंध, अक्षत, और अन्य उपचारों के माध्यम से विधिपूर्वक पूजन करें।

दीपमालिका (दीपक)-पूजन

किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस, या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित करें और उन्हें देवी महालक्ष्मी के समीप स्थापित करें। इसके बाद, दीप ज्योति की आरती करते हुए 'ॐ दीपावल्यै नमः' इस पवित्र नाम-मंत्र का जाप करें।

इस पूजन के दौरान, गंध, पुष्प, और अन्य उपचारों का समावेश करें, ताकि देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सके।

पूजन के अंत में, इस प्रकार प्रार्थना करें:

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

दीपमालिकाओं का पूजन करते हुए, अपने रीतिरिवाजों के अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, और खील (धान का लावा) जैसे विभिन्न पदार्थों को श्रद्धापूर्वक अर्पित करें।

इसके बाद, खील को भगवान गणेश, देवी महालक्ष्मी, और अन्य सभी देवी-देवताओं को अर्पित करें, ताकि उनका आशीर्वाद आपके जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता का संचार करे।

अंत में, सभी दीपकों को प्रज्वलित करें और अपने घरों को दीपों की रोशनी से सजाएं। इस उजाले के माध्यम से, अपने घर में शुभता, शांति, और समृद्धि का वातावरण बनाएं।

इस प्रकार, आप अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करके, अपने और अपने परिवार के लिए दिव्यता और समृद्धि का आह्वान करें।

श्रीलक्ष्मीजीकी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता। तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता ॥ ॐ ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ॐ ॥
दुर्गारूप निरञ्जनि, सुख-सम्पति-दाता। जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता ॥ ॐ ॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधिकी त्राता ॥ ॐ ॥
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ ॐ ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता। खान-पानका वैभव सब तुमसे आता ॥ ॐ ॥
शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ ॐ ॥
महालक्ष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ॐ ॥

मन्त्र पुष्पाञ्जलि –

दोनों हाथों में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्रोंका पाठ करे-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्व साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कामकामाय महां कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।

ॐ स्वस्ति साम्म्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुष आऽन्तादा परार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्यात् । सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्ध्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।

ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः। मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

हाथ में लिए हुए पुष्प भगवान गणेश और माता महालक्ष्मी को समर्पित करें।

इसके बाद श्रद्धापूर्वक प्रदक्षिणा करें और साष्टांग प्रणाम करें। पुनः हाथ जोड़कर विनम्रता से देवी-देवताओं से क्षमायाचना करें, ताकि पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए उनका आशीर्वाद और क्षमा प्राप्त हो।

क्षमा-प्रार्थना –

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात् ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥

पुनः श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके, 'ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु' कहें और जल अर्पित करें। इसके पश्चात गुरुजनों व बड़ों को आदरपूर्वक प्रणाम करें, फिर चरणामृत और प्रसाद का वितरण करें, ताकि सभी भक्तों पर देवी महालक्ष्मी की कृपा बरसे।

विसर्जन –

पूजन के अंत में, हाथ में अक्षत लेकर, नूतन गणेश और महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर, अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित और पूजित देवताओं का सम्मानपूर्वक विसर्जन करें। अक्षत अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें और देवताओं को विधिपूर्वक विदा करें, ताकि पूजन पूर्णता को प्राप्त हो।

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥

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