।।श्री गणेशाय नमः।।
श्री गणेशाऽम्बिका पूजन विधि
पूजन सामग्री-
सबसे पहले आप नीचे दी गई पूजन सामग्री एकत्र कर लें-
1.रोली 2. जनेऊ 3. चंदन 4. सिंदूर 5. अक्षत 6. कपूर 7. पुष्प 8.माला 9. दूब 10. तुलसी पत्र 11. इत्र 12. धूप 13. घी 14. रुई 15. माचिस 16. मिठाई 17. फल 18. पान 19. सुपारी 20. लौंग 21. इलायची 22. कलश ढक्कन सहित 23. नारियल 24. टून (लाल कपड़ा) 25. आम के पत्ते (पंच पल्लव) 26. गंगा जल 27. चौकी 28. चौकी पर बिछाने का कपड़ा 29. दूध 30. दही 31. शहद 32. शक्कर 33. पंच मेवा 34. कमल गट्टा 35. कमल का फूल 36. गणेश लक्ष्मी की मूर्ति 37. गणेश लक्ष्मी जी के वस्त्र 38. खीलें 39. गट्टे 40. दियाली 41. आसन 42. थाली 43. कटोरी 44. चम्मच 45. शंख 46. घंटी 47. पंच पात्र 48. तिल का तेल 49. कंजा 50. मजीठ 51. खड़ी हल्दी 52. खड़ी धनिया 53. चांदी का सिक्का 54. कुश 55. सिक्के 56. आटा 57. स्वच्छ मिट्टी 58. सप्त धान्य (जौ) 59. सर्वऔषधि/ सतावर 60. सप्तमृत्तिका 61.पंच रत्न ।
अब मैं उम्मीद करता हूँ कि आपने पूजन सामग्री एकत्र कर ली होगी।
पूजन विधि-
प्रातःकाल नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नानादि के पश्चात पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें। फिर गंगाजल का छिड़काव करके पूजा स्थान को शुद्ध करें। पूजा के लिए स्वस्तिक या चौक बनाएं और उस पर हल्का अक्षत छिड़कें। इसके ऊपर एक चौकी या पाटा रखें, उस पर लाल वस्त्र बिछाएं, और फल से निर्मित गणेश जी तथा गाय के गोबर या मिट्टी से बनी गौरी जी को पाटे पर स्थापित करें। यदि गाय का गोबर या मिट्टी उपलब्ध न हो, तो सुपारी पर कलावा लपेटकर उसे गणेश और गौरी के रूप में स्थापित कर सकते हैं। यदि आपके घर में पहले से गौरी जी उपलब्ध है, जिन्हें आप नियमित रूप से पूजते हैं, तो उन्हें ही स्थापित कर सकते हैं। साथ ही पाटे के दाईं तरफ घी का दीपक स्थापित कर लें। गौरी गणेश जी को स्थापित करते समय इस बात का अवश्य ध्यान दें कि उनका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ हो। अब आप स्वयं भी इस प्रकार शुद्ध आसन पर विराजमान हो कि आपका भी मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर हो और यदि आप पत्नी के साथ पूजा कर रहें हैं तो उसे अपने साथ दाहिने तरफ बैठायें।
पवित्रीकरण -
निम्नांकित मंत्र को पढ़ते हुए अपने ऊपर जल छिड़ककर स्वयं को पवित्र करें।ॐ पुनन्तु मा देव जनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वाभूतानि जातवेदः पुनीहि मा ।।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आचमन -
पवित्र हो जाने के बाद अब आप दाहिने हाथ में जल लेकर ऋषि तीर्थ से (हथेली के मूल भाग से) निम्नांकित मंत्र को पढ़ते हुए तीन बार जल पी लें।ॐ केशवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। ॐ माधवाय नमः।
यह मंत्र बोलकर अपने हाथों को धो लें अर्थात हाथ शुद्ध कर लें।
ॐ हृषीकेशाय नमः।
पवित्रीधारण -
हाथ शुद्ध कर लेने के उपरांत अपने दांये हाथ की अनामिका में दो कुश की तथा बायें हाथ की अनामिका में तीन कुश की पवित्री धारण करें। या दायें हाथ में स्वर्ण अंगूठी धारण कर लें।अब पवित्री को स्पर्श करते हुए निम्नलिखित मंत्र को पढे:-
ॐ पवित्र्त्रे स्त्थो व्वैष्ष्णळ्यौ सवितुर्व्वःप्प्रसव ऽउत्त्पुनाम्म्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्म्मिभिः।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्त्वामः पुने तच्छकेयम् ।।
आसनशुद्धि -
स्वयं पवित्र हो जाने के पश्चात निम्नांकित मंत्र को पढ़ते हुए अपने आसन को भी जल छिड़ककर पवित्र कर लें अथवा आसन का दोनों हाथ से स्पर्श करें।ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।
तिलक धारण -
रोली अक्षत से निम्नांकित मंत्र को पढ़ते हुए यजमान के माथे पर तिलक लगावें या अगर आप स्वयं पूजा कर रहे है तो स्वयं अपने माथे पर तिलक करें ।ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः। तिलकं तु प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थ सिद्धये ।।
शिखाबन्धन -
तिलक लगाने के पश्चात निम्नांकित मंत्र को पढ़ते हुए शिखा(चोटी) बाँधे, यदि शिखा न हो तो शिखा स्थान का स्पर्श ही कर लें।ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो बृद्धिं कुरुष्व मे।।
ग्रन्थि बंधन-
यदि पूजन में आपकी पत्नी आपके साथ में बैठी हो तो पत्नी की चुनरी में अक्षत, पुष्प, द्रव्य, सुपारी बांधकर पति के अंगवस्त्र से जोड़कर गांठ बांधे और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें।ॐ यदाबन्ध्नन् दाक्षायणा हिरण्यश्शतानीकाय सुमनस्यमानाः । तन्म आ बध्नामि शतशारदायायुष्माज्ञ्जरदष्टिर्यथासम् ॥
रक्षा विधानम-
अब बाएं हाथ में अक्षत,पीली सरसों, द्रव्य और तीन तार की मौली लेकर दाहिने हाथ से ढककर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें और दशों दिशाओं में अक्षत और पीली सरसों छोड़ें-अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि-संस्थिता। ये भूता विघ्नकर्त्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥ पूर्वे रक्षतु वाराह आग्येय्यां गरुडध्वजः। दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैर्ऋत्यां मधुसूदनः ॥ पश्चिमे पातु गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः। उत्तरे श्रीपती रक्षेदैशान्यां तु महेश्वरः ॥ ऊर्ध्वं गोवर्धनो रक्षेद् ह्यधोऽनन्तस्तथैव च। एवं दश दिशो रक्षेद् वासुदेवो जनार्दनः ॥ रक्षाहीनं तु यत्स्थानं रक्षत्वीशो महाद्रिधृक् । यदत्र संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वतः ॥ स्थानं त्वक्त्वा तु तत्सर्व यत्रस्थं तत्र गच्छतु। भूतप्रेतपिशाचाद्या अपक्रामन्तु राक्षसाः ॥
स्वस्तिवाचन -
यजमान हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर गणेशजी का ध्यान करते हुए ब्राह्मणों द्वारा किये जा रहे स्वस्ति पाठ को सुने अथवा स्वयं स्वस्ति वाचन का पाठ करे।ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु व्विश्श्वतोऽदब्धासो ऽअपरीतास ऽउद्भिदः। देवा नो यथा सदमिदृधेऽअसन्नप्प्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।।१।। देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना गुं रातिरभि नो निवर्त्तताम् । देवाना गुं सख्यमुपसेदिमा वयम् देवा न ऽआयुः प्प्रतिरन्तु जीवसे ।। २ ।। तान्पूर्व्वया निविदा हूमहे वयं भगम्मित्रमदितिन्दक्षमस्रिधम्। अर्य्यमणं व्वरुण गुं सोममश्श्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्क्करत्।।३।।
तन्नो व्वातो मयोभु व्वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । तद्दग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्श्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ।।४।। तमीशानञ्जगतस्तस्त्थुषस्प्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा व्वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।५।। स्वस्ति न ऽइन्द्रो व्वृद्धश्श्रवाः स्वस्ति नः पूषा व्विश्ववेदाः स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो ऽअरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्प्पतिर्दधातु ।।६।।
पृषदश्श्वामरुतः पृश्न्निमातरः शुभं य्यावानो व्विदथेषु जग्मयः। अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो व्विश्श्वे नो देवाऽअवसागमन्निह ।।७।। भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा गुं सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं य्यदायुः ।।८।। शतमिन्नु शरदो ऽअन्ति देवा यत्रा नश्चक्क्रा जरसं तनूनाम्। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मद्ध्यारीरिषतायुर्गन्तोः ।।९।।
अदितिर्द्यौरदिति-रन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। व्विश्वे देवा ऽअदितिः पञ्चजना ऽअदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ।।१०।। द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष गुं शान्तिः प्पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । व्वनस्पतयः शान्तिर्व्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व्व गुं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।।११।। यतो यतः समीहसे ततो नो ऽअभयङ्कुरु । शन्नः कुरु प्रजाब्भ्योऽभयन्नः पशुब्भ्यः ।।१२।। विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं३ तन्न आसुव ।।१३।। सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ।।
हाथ में लिए हुए अक्षत व पुष्प गणेश जी को समर्पित कर दें।
अब बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए दाहिने हाथ से अक्षत गणेश और गौरी जी को समर्पित करें।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः।
ग्रामदेवताभ्यो नमः। वास्तुदेवताभ्यो नमः। स्थानदेवताभ्यो नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः। एतत् कर्मप्रधानदेवताभ्यो नमः। सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।।
मङ्गल-श्लोकपाठ -
ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।।१।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।।२।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।।३।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।।४।।
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः। सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ।।५।।
सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।६।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनं हरिः ।।७।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव। विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ।।८।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः। येषामिन्दीवर-श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ।।९।।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।१०।।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।११।।
स्मृतेः सकल-कल्याणं भाजनं यत्र जायते। पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ।।१२।।
सर्वेष्वारम्भ-कार्येषु त्रयस्त्रि-भुवनेश्वराः । देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशान-जनार्दनाः ।।१३।।
विश्वेशं माधवं दुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम्। वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणि-कर्णिकाम् ।।१४।।
वक्रतुण्ड ! महाकाय ! कोटिसूर्यसमप्रभ !। निर्विघ्नं कुरु मे देव ! सर्वकार्येषु सर्वदा।।१५।।
।। श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।।
(अब गणेश जी को श्रद्धा के साथ अक्षत और पुष्प अर्पित कर दें।)
अब हाथ में पान, सुपारी, गन्ध, अक्षत, पुष्प, जल एवं अपनी श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा लेकर निम्नांकित संकल्प करें।
संकल्प
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत- मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपेभारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे.अमुख प्रदेशे (जहाँ संकल्प लिया जा रहा है उस प्रदेश का नाम जैसे उत्तरप्रदेशे) ............ (जिले का नाम) अमुख मंडलान्तर्गत ............(अमुख स्थान ) परिक्षेत्रे ...... नगरे// ग्रामे/क्षेत्रे ....(..............(विक्रम संवत)........... वैक्रमाब्दे....(संवत का नाम ).......... संवत्सरे.......... अयने .............. ऋतु.......... मासे............ शुक्ल/कृष्णपक्षे............ तिथौ.......... वासरे....... नक्षत्रे ............योगे ........... करणे .... राशि स्थिते सूर्ये ............. राशि स्थिते चंद्रे ............ राशि स्थिते गुरु प्रातः / सायंकाले........ गोत्र.....शर्मा/ वर्मा / गुप्तः अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य क्षेमस्थैर्यायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थम् दैहिक दैविक आधि भौतिक त्रिविधतापशमनार्थं धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ फलावाप्तये नित्यकल्याणलाभाय श्री भगवत्प्रीत्यर्थ....(जिस कार्य के लिए गणेश पूजन कर रहे हैं उसका नाम) कर्माहं करिष्ये। तदंगत्वेन निर्विघ्नता सिद्धयर्थम् गणेशादि देवानां पूजनम् च करिष्ये।
संकल्प करते समय हाथ में ली गई दक्षिणा और सामग्री आदि को गणेश जी के सामने रख दें ।
भूमिपूजनम -
अब निम्नांकित मंत्र पढ़कर भूमि पर गन्ध, अक्षत और पुष्प छोड़ें-ॐ स्योना पृथिविनो भवानृक्षरा निवेशिनी। यच्छानः शर्म सप्रथाः ।।
आधार शत्क्त्यै पृथिव्यै नमः। सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।।
दीपपूजनम -
अब निम्नांकित मंत्र पढ़कर ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में स्थापित घी के दीपक के पास गन्ध, अक्षत और पुष्प छोड़ें-भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्याविघ्नकृत्। यावत् कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव ।।
दीपस्थ देवतायै नमः । सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत-पुष्पाणि समर्पयामि।।
गणेश- गौरी आवाहन -
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर गणेश गौरी का आवाहन करें-ॐ गणानान्त्वा गणपति गुं हवामहे प्प्रियाणान्त्वा प्प्रियपति गुं हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति गुं हवामहे व्वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ।।
ॐ अम्बे ऽअम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन् । ससस्त्यश्श्वकः सुभद्रिकाङ्काम्पीलवासिनीम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाऽम्बिकाभ्याम् नमः ध्यानार्थे पुष्पाक्षतम् समर्पयामी।।
प्रतिष्ठा -
गौरी-गणेश को स्पर्श करके उन पर अक्षत छोड़ते हुए उनकी प्रतिष्ठा करें।ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्प्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ गुं समिमं दधातु। विश्श्वेदेवा स ऽइह मादयन्तामों प्रतिष्ठ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाऽम्बिके सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।
आसन -
भगवान गणेश और माता गौरी को आसन के लिए पुष्प समर्पित करें-ॐ पुरुष ऽएवेद गुं सर्वं व्यद्भूतं य्यच्च भाळ्यम्। उतामृतत्त्व स्येशानो यदन्नेनातिरोहति ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, आसनं समर्पयामि। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
पाद्य(पैर धुलना) -
पाद्य के लिए एक-एक आचमनी जल भगवान गणेश और माता गौरी के पैरों के पास छोड़ दें।ॐ एतावानस्य महिमातो ज्ज्यायाँश्श्च पूरुषः । पादोऽस्य व्विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्यः(हाथ धुलने का जल) -
एक शुद्ध पात्र में जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प और फल लेकर अर्घ्य देवेंॐ त्रिपादूर्ध्व ऽउदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः। ततो व्विष्ष्वङ् व्यक्क्रामत्साशनानशने ऽअभि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, अर्घ्यं समर्पयामि।
आचमन -
आचमन के लिए गौरी गणेश जी के मुख के सामने निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए दो आचमनी जल गिरावे।ॐ ततो व्विराडजायत व्विराजो ऽअधि पूरुषः। स जातो ऽअत्त्य रिच्च्यत पश्चाद् भूमिमथो पुरः।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, आचमनं समर्पयामि।
स्नान -
गौरी-गणेश जी को निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक एक आचमनी जल स्नान के लिए छोड़े-ॐ तस्म्माद्यज्ञात्सर्व्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्ज्यम्। पशूस्ताँश्चक्क्रेव्वायळ्यानारण्ण्या ग्ग्राम्याश्च्च ये।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, स्नानं समर्पयामि ।
पञ्चामृत स्नान -
जल से स्नान करने के पश्चात निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए पञ्चामृत से स्नान कराएं-पञ्चामृतं मयाऽऽनीतं पयो दधि घृतं मधु। शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि ।
शुद्धोदक स्नान -
पंचामृत स्नान के पश्चात निम्नांकित मंत्र बोलते हुए पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं-गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
वस्त्र -
स्नान के बाद भगवान गणेश और माता गौरी जी को एक -एक वस्त्र अर्पित करें या वस्त्र का अभाव होने पर रक्षासूत्र अर्पित करें-शीत-वातोष्ण-संत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रं समर्पयामि। वस्त्रान्ते द्विराचमनं समर्पयामि।
वस्त्र चढ़ाने के बाद दो आचमनी जल गिरावें।
यज्ञोपवीत -
गणेश जी को श्रद्धापूर्वक जनेऊ पहनाएं-नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर!।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणपतये नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।। यज्ञोपवीतान्ते द्विराचमनं समर्पयामि।
जनेऊ पहनाने के बाद पुनः दो आचमनी जल गिरावें
उपवस्त्र
भगवान गणेश और माता गौरी जी को पुनः निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए एक-एक वस्त्र अर्पित करें या वस्त्र का अभाव होने पर रक्षासूत्र अर्पित करें-ॐ सुजातो ज्ज्योतिषा सह शर्म व्वरूथमासदत्त्स्वः। व्वासो ऽअग्ग्ने व्विश्वरूप गुं संव्ययस्व विभावसो ।।
श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि। उपवस्त्रान्ते द्विराचनं समर्पयामि।।
उपवस्त्र अर्पित करने के बाद पुनः दो आचमनी जल गिरावे।
चन्दन -
अब श्रद्धापूर्वक भगवान गणेश जी को चंदन और माता गौरी जी को रोली (कुमकुम) लगाए -ॐ त्वांगन्धर्व्वा ऽअखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्प्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा व्विद्धान्यक्ष्मादमुच्च्यत ।।
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, गन्धं समर्पयामि।
अक्षत -
घुले हुए, चंदन, कुंकुम युक्त अक्षत चढ़ावेअक्षताश्च सुरश्रेष्ठाः कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः। मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प (माला) -
भगवान गणेश और माता गौरी जी को सुगंधित पुष्पों की माला पहनाएं-माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पुष्पाणि पुष्पमालां च समर्पयामि।
दूर्वा -
गणेश जी को कोमल दूर्वा के इक्कीस अंकुर चढ़ावे, गौरी जी को दूर्वा न चढ़ावें।दूर्वाकुरान् सुहरितान्-अमृतान् मङ्गलप्रदान्। आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक !।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणपतये नमः, दुर्वाङकुरान् समर्पयामि।
सिन्दूर -
गणेश और गौरी जी को सिंदूर लगाएंसिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्। शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, सिन्दूरं विलेपयामि।
अबीर, गुलाल आदि द्रव्य -
गणेश और गौरी जी को अबीर, गुलाल प्रोक्षण (छिड़काव) करें-नानापरिमलैर्द्रव्यैर्निर्मितं चूर्णमुत्तमम् । अबीरनामकं चूर्ण गन्धं चारु प्रगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।
सुगन्धितद्रव्य -
गणेश और गौरी जी को इत्र लगाएं -ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, सुगन्धितद्रव्याणि समर्पयामि।।
धूप -
धूपबत्ती अथवा अगरबत्ती से धूप दें-वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्धमुत्तमः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूपं आघ्घ्रापयामि।
दीप -
गणेश और गौरी जी को दीपक दिखाएं -ॐ अग्निज्ज्यॆतिज्जर्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्ज्योतिज्ज्योतिः सूर्य्यः स्वाहा। अग्निर्व्वर्चो ज्ज्योतिर्व्वर्चः स्वाहा सूर्यो व्वर्चो ज्ज्योतिर्व्वर्चाः स्वाहा। ज्ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्ज्योतिः स्वाहा।।
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरापहम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीपं दर्शयामि।
नैवेद्यम् -
दीप दिखाने के पश्चात अब हाथ धोकर अनेक प्रकार के मिष्ठान्न अर्पित करें-शर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च। आहारं. भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि। आचमनीयं समर्पयामि मध्ये पानीयं उत्तरापोशनं समर्पयामि।
करोद्वर्त्तन -
करोद्वर्तन (दोनों हाथ की उंगली में चंदन लेकर) के लिए चंदन छिड़कना चाहिएचन्दनं मलयोद्भूतं करोद्वर्त्तनकं देव ! कस्तूर्यादिसमन्वितम्। गृहाण परमेश्वर !।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, चन्दनेन करोद्वर्तनं समर्पयामि।
ऋतुफलानि -
गौरी गणेश जी को विभिन्न प्रकार के ऋतु फल निवेदन करें-इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि।
ताम्बूल -
अब सुपाड़ी, लौंग, इलायची सहित पान चढ़ावे-पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थे पूगीफल- ताम्बूलं समर्पयामि।
दक्षिणा -
अपनी श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा अर्पित करें-हिरण्यगर्भ-गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो।
अनन्त-पुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दक्षिणां समर्पयामि।
प्रदक्षिणा -
गणेश जी की तीन बार परिक्रमा करें ।ॐ ये तीर्थानि प्प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः । तेषा गुं सहस्त्रयोजनेऽव धन्नवानि तन्मसि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।
पुष्पाञ्जलिः -
हाथ में पुष्प लेकर मंत्र पढ़कर पुष्प अर्पित करें ।ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साद्धयाः सन्ति देवाः ।।
नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पाञ्जलिर्मया दत्त गृहाण परमेश्वर !।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
विशेषार्ध्य -
ताम्रपात्र में जल चंदन, गंध, अक्षत, पुष्प, फल, दूब तथा दक्षिणा डालकर अंजलि में अर्घ्यपात्र लेकर मंत्र पढ़ते हुए विशेषार्ध्य प्रदान करें।ॐ रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष ! रक्ष त्रैलोक्यरक्षक !। भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् ।।१।।
द्वैमातुर ! कृपासिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रभो !। वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद !।
अनेन सफलार्येण फलदोऽस्तु सदा मम ।।२।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री मन्महागणाधिपतये नमः, विशेषार्ध्यम् समर्पयामि।
गणेश प्रार्थना
विघ्नेश्वराय लम्बोदराय सुरप्रियाय, वरदाय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ ! नमो नमस्ते ।।१।।
गौरी प्रार्थना
याः श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः,
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा,
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ।।१।।