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Diwali

दिवाली 2024 | Diwali 2024

दिवाली (दीपावली) कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनायी जाती है। दिवाली पाँच दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, अमावस्या को दिवाली, प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट भी कहते है और द्वितीया को भाई दूज मनाया जाता है। इस प्रकार दिवाली का यह पर्व कुल पाँच दिनों तक चलता है। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती है, और अपने भक्तों के घर जाकर उनके घरों को सुख संपत्ति से भर देती है। इसलिए सभी लोग माता लक्ष्मी जी व भगवान गणेश की पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से करते हैं। इस वर्ष दीवाली की तिथि को लेकर लोगों में काफी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग इसे 31 अक्टूबर को मनाने की बात कर रहे हैं, जबकि कुछ इसे 1 नवंबर को मनाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में हम आपको स्पष्ट जानकारी देने जा रहे हैं कि इस साल दीवाली कब है? साथ ही, दीवाली पर्व के पहले और बाद में मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों की तिथियों को भी बताएंगे जिससे दीवाली पर्व को लेकर आपका संशय पूरी तरह दूर हो जाए।

दीवाली कब मनाएं: 31 अक्तूबर या 1 नवंबर? जानिए सही तिथि:-
  • दीवाली पर्व की तिथि :- 31 अक्टूबर 2024
  • घर में दीवाली पूजन का शुभ मुहूर्त :- शाम 06:17 बजे से रात्रि 08:12 बजे तक
  • अमावस्या प्रारभ तिथि:- 31 अक्टूबर 2024 को अपराह्न 03:52 बजे से
  • अमावस्या समापन तिथि :- 01 नवंबर 2024 को शाम 06:17 बजे तक

दीवाली पूजन का आयोजन अमावस्या तिथि पर रात्रि में करने का विधान है। इस वर्ष, अमावस्या तिथि 01 नवंबर 2024 को शाम 6:17 बजे तक रहेगी, जबकि 31 अक्टूबर 2024 को यह तिथि पूरी रात विद्यमान रहेगी। दीवाली पूजन का शुभ मुहूर्त भी 6:17 बजे से 8:12 बजे तक है, जिसमें अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस प्रकार, दीवाली पर्व 31 अक्टूबर 2024 को ही धूमधाम से मनाया जाएगा।

व्यावसायिक प्रतिष्ठान में दीवाली पूजन हेतु शुभ मुहूर्त :-
  • 31अक्टूबर 2024 शाम 06:17 बजे से रात्रि 08:12 बजे तक।
  • 01 नवंबर 2024 अपराह्न 01:42 से 03:11 बजे तक।

इस वर्ष दीवाली पर विशेष संयोग बन रहा है, जिसमें 31 अक्टूबर 2024 को शाम 06:17 बजे से रात 08:12 बजे तक वृषभ लग्न का योग रहेगा, जो कि एक स्थिर लग्न है। इस लग्न में देवी लक्ष्मी का पूजन अत्यंत शुभ और लाभकारी माना जाता है।

यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दूरी घर से अधिक नहीं है, तो आप इस शुभ समय में पहले अपने व्यापारिक स्थान(फैक्ट्री, दुकान आदि) पर पूजा कर सकते हैं और इसके बाद घर पर लक्ष्मी पूजन संपन्न कर लें। ध्यान रखें कि स्थिर लग्न में पूजा का प्रारंभ अवश्य हो जाना चाहिए, ताकि पूजन का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।

यदि किसी कारणवश 31 अक्टूबर को यह संभव नहीं हो पाता है, तो आप अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में 01 नवंबर 2024 को भी पूजन कर सकते हैं। इस दिन अपराह्न 01:42 बजे से 03:11 बजे तक कुम्भ लग्न का समय प्राप्त हो रहा है, जो कि एक स्थिर लग्न है। कुम्भ लग्न में भी लक्ष्मी पूजन करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है।

इस प्रकार, आप दोनों अवसरों में से किसी का भी चयन कर, शुभ मुहूर्त में देवी लक्ष्मी का पूजन कर सकते हैं।

दीवाली के साथ मनाए जाने वाले अन्य पर्वों की तिथियाँ:
  1. धनतेरस - 29 अक्टूबर, दिन मंगलवार
  2. नरक चतुर्दशी व छोटी दिवाली - 30 अक्टूबर, दिन बुधवार
  3. गोवर्धन पूजा - 2 नवंबर, दिन शनिवार
  4. भाई दूज - 3 नवंबर, दिन रविवार
दीवाली पूजन विधि :-

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शाम के समय स्नान आदि करके पूजा प्रारंभ की जाती है। सबसे पहले पूजा वाले स्थान को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर ले। फिर चौकी रखकर उसपर लाल कपड़ा बिछाये, इसके बाद बिना टूटे हुए थोड़े अक्षत रखकर गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति को रखे। कई जगहों पर कलश की स्थापना की जाती है, यदि आप चाहे तो कलश स्थापना के लिए एक कलश में गंगाजल मिलाकर जल भरे और उसमे एक खड़ी हल्दी, एक सिक्का, एक सुपारी, दूर्वा डालकर रखे और उसके ऊपर कटोरी में चावल भरकर कलश के मुँह पर आम के पत्ते लगाकर उसे ढक दे। यदि संभव हो तो एक नारियल में स्वास्तिक बनाकर उसपर कलावा लपेटकर कलश के ऊपर रखे। कलश को चौकी के दाई तरफ थोड़े अक्षत डालकर ही स्थापित करे। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं। फिर रोली से गणेश जी और माता लक्ष्मी जी को टीका करे, धूपबत्ती दिखाए और माला पहनाए। इसके बाद फल, मिष्ठान, फूल और नैवेद्य आदि माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को अर्पित करें। माता लक्ष्मी और गणेश जी की महिमा की कथा सुने। पूजन सम्पन्न हो जाने के बाद अन्य दीप में सरसों का तेल भर कर कपास की बत्ती लगाकर दीपों को मुख्य द्वार और देवमंदिर, घर, नदी, बगीचा आदि जगहों पर दीपक जलाना चाहिए। उस दिन गाय की सिंग आदि अंगों में रंग लगाकर उन्हे घास और अन्न देकर उनकी परिक्रमा करके पूजन करना चाहिए।

दीवाली पूजन की विस्तृत वैदिक विधि में सबसे पहले गौरी-गणेश का पूजन होता है, इसके बाद कलश स्थापना की जाती है, और अंत में गणेश-लक्ष्मी का विधिवत पूजन किया जाता है। यदि आप दीवाली पूजन की संपूर्ण और शास्त्रोक्त विधि के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो हमारे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

  1. गौरी- गणेश पूजन विधि - Ganesh Pujan Vidhi
  2. कलश स्थापना व पूजन विधि – Kalash Pujan Vidhi
  3. गणेश- लक्ष्मी पूजन विधि - Lakshmi Pujan Vidhi
भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा का महत्व:

दिवाली के दिन पूरी विधि विधान से गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। मां लक्ष्मी ऐश्वर्य और वैभव की देवी हैं। इसलिए दिवाली के दिन इनकी पूजा करने से ना सिर्फ भौतिक सुख की प्राप्ति होती है बल्कि घर में भी ढेर सारी खुशियां आती हैं। गणेश जी सर्वप्रथम पूजनीय है, इसलिए माता लक्ष्मी जी के साथ सदैव गणेश जी की पूजा की जाती है। लोग अपनी समर्थ्यता के अनुसार लोग अपने घरों को सजाते है। माता लक्ष्मी जी उसी घर मे प्रवेश करती है जहाँ स्वच्छता होती है। इसलिए सभी लोग अपने घरों की सफाई पर विशेष ध्यान देते है। इस दिन पूजा-पाठ करने से घर में अपार संपत्ति आती है। माता लक्ष्मी जी को रंगोली बहुत पसंद है, इसलिए अपने मुख्य द्वार पर रंगोली अवश्य बनानी चाहिए। हमारे सनातन धर्म में आम के पेड़ को एक दिव्य वृक्ष माना जाता है और सभी प्रकार के धार्मिक कार्यों को शुरू करने से पहले आम के पेड़ की लकड़ी और पत्तियों का उपयोग किया जाता है। दिवाली पर भी आपको घर के मुख्य द्वार और पूजा घर के मुख्य द्वार पर गेंदे के फूल और आम के पत्तों से बनी झालर लगानी चाहिए। ऐसा करना न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, बल्कि वास्तु के अनुसार भी यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।

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